Saturday, September 26, 2009

चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है!

मनौती पूरी करतीं मां वैष्णो
जय माता दी! यह पंक्ति मां भगवती के भक्तों को सहज ही वैष्णोधाम की अनुभूति करा देती है। वैष्णोदेवी यात्रा करने वालों में विरले ही कोई होगा, जो इन पंक्तियों को ना पहचाने, जिसकी प्रतिध्वनि भी 'जय माता दी ही है। कहते हैं कि मातारानी का बुलावा आने पर ही उनका दर्शन संभव है। ऐसा मेरे साथ भी हुआ, जब फोन पर मुझे रेलवे स्टेशन पहुंचने को कहा गया। आपाधापी में आधे घंटे के भीतर मै ट्रेन में पहुंचा और वह चल पड़ी। रास्ते भर माता रानी का ध्यान करते जब हमलोग जम्मू पहुंचे, तो जय माता दी के उद्घोष से समूचा स्टेशन परिसर गूंज उठा। यहां से करीब 50 किलोमीटर दूर कटरा का सफर बस से तय करना और माता दर्शन को उत्कट मन की अधीरता मानो थम नहीं रही थी। अत: हमलोग तरोताजा हो कटरा जाने वाली बस पर सवार हो गए। घुमावदार पहाड़ी रास्तों व हरीभरी वादियों के नैसर्गिक सौंदर्य ने ऐसा आत्ममुग्ध किया कि कटरा कब आया, पता ही नहीं चला। कटरा पहुंचकर श्राइनबोर्ड से यात्रा पर्ची ली और शुरू हो गई भक्ति में डूबी देवीधाम की अतुलनीय यात्रा।
समुद्रतल से करीब छह हजार फुट ऊपर त्रिकुटा पर्वत शृंखलाओं की गोद में बसी वैष्णोदेवी मां जगदंबा की शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखती हैं। करीब 13 किलोमीटर पैदल यात्रा के बाद ही मातारानी का दर्शन संभव है। पौराणिक कथाओं के अनुसार वैष्णोदेवी ने दक्षिण भारत में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया व उन्हें त्रिकुटा नाम मिला। बाद में इनका अवतार विष्णु परिवार में हुआ और ये वैष्णवी कहलाईं। भगवान राम अपने वनवास काल में जब माता सीता को ढूंढ रहे थे, तो उन्होंने वैष्णवी को घोर तपस्या में लीन देखा। वैष्णवी ने श्रीराम से कहा कि उन्होंने उन्हें अपना पति मान लिया है, तो श्रीराम बोले कि इस जन्म में उनका अवतार सीता के लिए है, अत: वे कलियुग में उनके पति होंगे। श्रीराम ने उन्हें मानिक पर्वत पर त्रिकुटा शृंखला की गुफा में तप करने को कहा। यही गुफा मां का स्थान है और भूगर्भ शास्त्री भी इसे अरबों साल पुरानी मानते हैं।
कटरा से करीब दो किलोमीटर आगे भुमिका मंदिर है। मान्यता है कि करीब सात सौ वर्ष पूर्व यहीं पर श्रीधर पंडित को कन्या रूप में देवी दर्शन हुए। पंडितजी ने देवी की आज्ञानुसार यहां समष्ट भंडारा दिया, जिसमें गुरू गोरखनाथ व उनके शिष्य भैरवनाथ भी पधारे। भैरव ने दिव्य कन्या की परीक्षा लेनी चाही, तो माता पवन रूप में भुमिका से विलुप्त हो दर्शनी द्वार होते हुए त्रिकुट पर्वत की ओर बढ़ीं। स्मृति स्वरूप यहां दर्शनी दरवाजा बना, जहां से त्रिकुट पर्वत का मनोहारी दर्शन मिलता है। भैरव ने भी योग विद्या से देवी का पीछा किया। महाशक्ति के साथ वीर लंगूर भी थे। रास्ते में वीर लंगूर को प्यास लगी, तो देवी ने पत्थरों पर वाण चलाकर मीठी जलधारा निकाली और वीर लंगूर की प्यास तृप्त हुई। देवी ने भी वहां जल पीया और केश धोए। यहां आज भी वाणगंगा नदी बहती है, जिसके पावन जल में स्नान करने से कई रोग दूर होते हैं। वैष्णोधाम मार्ग में ही चरण पादुका मंदिर है, जहां महाशक्ति ने रुककर पीछे देखा कि भैरव आ रहा है या नहीं। रुकने से यहां माता के चरण चिन्ह बन गए, इसीलिए इसे चरण पादुका पुकारते हैं। इसके आगे अर्धकुमारी मंदिर आता है, जहां भैरव से छिपकर देवी ने नौ महीने तक गुफा में तपस्या की थी। गुफा भीतर से काफी संकरी व टेढ़ी मेढ़ी है, जिसमें जाने पर भक्तों के मुख से 'जय माता दी की ध्वनि स्वत: तीव्र हो जाती है। मान्यता है कि इस गुफा का निकासी द्वारा पाप व पुण्य का पैमाना है, जहां कई बार दुबले लोग भी फंस जाते हैं और मोटा व्यक्ति आसानी से निकल आता है।
अर्ध कुमारी से आगे ढाई किलोमीटर खड़ी चढ़ाई वाली यात्रा है, यहां पहाड़ी की आकृति हाथी के मस्तक जैसी प्रतीत होती है, इसी कारण इसे हाथी मत्था की चढ़ाई कहते हैं। चार किलोमीटर आगे सांझी छत है, जिसे दिल्ली वाली छबील भी कहते हैं। यहां से मां के दरबार का रास्ता समतल व ढालुवां है। वैष्णोधाम पहुंचकर हमलोगों ने कंपकंपा देने वाले शीतल व पावन जल में स्नान किया और यात्रा पर्ची दिखाकर प्रफुल्लित मन से पवित्र गुफा की ओर चले। गुफा के अंत में पिण्डी रूप में महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती का दिव्य दर्शन हुआ, जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। गुफा के समीप ही श्रीराम मंदिर और यहीं 125 कदम नीचे शिव गुफा भी है, जिनके दर्शन का अलग ही महत्व है। वैष्णोदेवी यात्रा तब तक पूरी नहीं होती, जब तक भैरवनाथ दर्शन न हो। भैरवनाथ मंदिर देवीधाम से करीब तीन किलोमीटर ऊपर खड़ी व कठिन चढ़ाई के बाद आता है। मान्यता है कि भैरव द्वारा परीक्षा हेतु पीछा किए जाने से देवी क्रुद्ध हो गईं और उन्होंने शस्त्र द्वारा भैरव का सिर धड़ से अलग कर दिया, जो दूर जा गिरा। इसके बाद उसने मां से पापों की क्षमा मांगी, तो उन्होंने वात्सल्य भाव से वर दिया कि वैष्णोदेवी दर्शन कर जो श्रद्धालु भैरव का दर्शन करेगा, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।
वैष्णोदेवी यात्रा के अलावा भी जम्मू में काफी कुछ दर्शनीय है, जिनमें प्रसिद्ध रघुनाथ मंदिर, विशाल शिवमंदिर, जामवंत गुफा, कालीमाता मंदिर आदि प्रमुख तीर्थस्थल हैं, जिनमें सभी का पौराणिक महत्व है। जम्मू के रघुनाथ मंदिर परिसर में जहां सभी देवी देवताओं, दसों दिशाओं व समस्त ग्रह नक्षत्रों के अलग अलग व छोटे छोटे मंदिर हैं, वहीं यहां के शिवमंदिर में सहस्त्र लिंग वाला विशाल व पवित्र शिवलिंग है, जो शायद ही आपने कहीं और देखा हो। इसी शहर में प्राचीन जामवंत गुफा है, जहां द्वापर काल में भगवान श्रीकृष्ण व रीछराज जामवंत के मल्लयुद्ध का प्रसंग पौराणिक कथाओं में मिलता है, भगवान व भक्त के बीच मल्लयुद्ध के पीछे त्रेतायुग से द्वापर तक की लंबी कथा है। अगर आप पर्यटन प्रेमी भी हैं, तो यहां कश्मीर भ्रमण भी किया जा सकता है, जो 'धरती का स्वर्ग के नाम से विश्वभर में प्रसिद्ध है। साथ ही, पटनी टॉप जैसे कई हिल स्टेशन भी यहां से काफी करीब हैं, जहां की नैसर्गिकता आपका मन मोह सकती है। खरीददारी के लिए जम्मू में फल व सूखा मेवा, ऊनी वस्त्र, लकड़ी के आकर्षक सामान और पश्मीना की चादर व कंबल आदि ढेरों सामग्री उचित मूल्य पर ली जा सकती हैं। सर्वेश पाठक

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