Wednesday, September 30, 2009

वेंकटमना-गोविंदा, गोविंदा-गोविंदा..!

भवसागर पार लगाते बालाजी
तिरुमाला की सुरम्य पर्वत शृंखला पर बसे हैं वेंकटेश्वर
वेंकटमना-गोविंदा, गोविंदा-गोविंदा..! यह पंक्ति उन भक्तों को अवश्य याद होंगी, जिन्होंने तिरुपति बालाजी मंदिर के दर्शन किए होंगे। जी हां, यहीं वह पंक्ति है, जिसका स्मरण कर भक्त अपने भगवान बालाजी के दर्शन करते हैं और जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। इस विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पर गए सभी भक्त जानते होंगे कि बालाजी दर्शन के लिए विभिन्न जगहों तथा बैंक आदि से एक विशेष पर्ची कटती है, जिसके बाद ही प्रभु वेंकटेश्वर का दर्शन संभव है।
सौभाग्य से जिस दिन हमलोग तिरुपति पहुंचे, उस दिन वहां दर्शन पर्ची समाप्त हो गई थी और रात्रि के ग्यारह बजे तक प्रभु के सीधे दर्शन की अनुमति थी। टोकन सिस्टम से बालाजी दर्शन के इतिहास में यह पहला अवसर था, जब पर्ची के बिना भक्तों ने प्रभु दर्शन किया और अगले दिन यह स्थानीय मीडिया का प्रमुख समाचार बना। हमलोगों के लिए भी बालाजी के सीधे दर्शन की बात किसी आश्चर्य से कम नहीं थी। आनन फानन में हमलोग वहां की भव्य धर्मशाला श्रीनिवासम पहुंचे और घंटे भर में तैयार हो एपीएसआरटीसी की बस में निकल पड़े प्रभु वेंकटेश के दर्शन को। धाम पर पहुंचते-पहुंचते रात के दस बज गए थे, मंगलवार मेरे उपवास का दिन था, लेकिन न जाने कौन सी ऊर्जा थी कि वेंकटमना-गोविंदा-गोविंदा करते नंगे पांव मंदिर की ओर दौड़ पड़े। पट बंद होने के पहले हम लोग मंदिर में प्रवेश कर चुके थे और सामने प्रभु वेंकटेश्वर को देख तन-मन पुलकित हो उठा।
आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में समुद्र तल से तीन हजार फुट से ज्यादा की ऊंचाई पर मौजूद तिरुमाला पर्वत शृंखलाओं की गोद में बसे तिरुपति बालाजी का मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तु एवं शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वामी पुष्करणी तालाब के निकट इस दिव्य स्थल पर भगवान विष्णु ने निवास किया था। इस स्थान के चारों ओर तिरुमाला पहाडिय़ा शेषनाग के सात फनों की भांति प्रतीत होती हैं, जिससे इन्हें सप्तगिरि कहते हैं। वेंकटाद्रि नाम से प्रसिद्ध सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है प्रभु वेंकटेश्वरैया का भव्य मंदिर। मान्यता है कि कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही मुक्ति संभव है।
एक अन्य अनुश्रुति में 11वीं शताब्दी में संत रामानुज को तिरुपति की सातवीं पहाड़ी पर प्रभु श्रीनिवास का साक्षात दर्शन हुआ और उनके आशीर्वाद से रामानुज को 120 वर्ष की दीर्घायु मिली, फिर उन्होंने वेंकटेश्वर की ख्याति दूर-दूर तक फैलाई। इस पुरातन धाम की स्थापना को लेकर कई धारणाएं हैं, जिनमें यह भी है कि मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई, जो समानता व प्रेम के सिद्धांत को मानता है। 5वीं शताब्दी तक तिरुपति बालाजी प्रमुख धार्मिक केंद्र बन चुका था। 9वीं शताब्दी में यहां कांचीपुरम के पल्लव शासकों का अधिपत्य था, लेकिन 15वीं शताब्दी के विजय नगर शासनकाल के बाद बालाजी की ख्याति दूर-दूर तक फैली। सन 1843 से 1933 तक अंग्रजी शासन में इस पुण्य स्थल का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला, जिसके बाद मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने स्वतंत्र प्रबंध समिति 'तिरुमाला तिरुपति को सौंप दिया। आंध्र प्रदेश के राज्य बनने पर समिति का पुनर्गठन हुआ और राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर यहां एक प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त कर दिया गया। यहां मुख्य मंदिर प्रांगण के गर्भगृह में भगवान वेंकटेश्वर की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वेंकटेश्वर बुलाते हैं।
माना जाता है कि प्रभु वेंकटेश का दर्शन करने वाले पर उनकी विशेष कृपा होती है। वैंकुठ एकादशी पर यहां प्रभुदर्शन करने वाले के सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य जीवन-मृत्यु के भवसागर से पार हो जाता है। मंदिर परिसर की भव्यता देखते ही बनती है और रात्रि के समय यहां से नीचे तिरुपति नगर स्वप्नलोक सा प्रतीत होता है। परिसर में बने अनेक द्वार, मंडपम व छोटे मंदिर अलग ही छटा बिखेरते हैं। पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम, तिरुमाला राय मंडपम, आइना महल, ध्वज स्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कवली, विमान प्रदक्षिणम, श्रीवरदराज स्वामी श्राइन पोटु आदि परिसर के प्रमुख आकर्षण हैं। बालाजी के दर्शन के लिए देश विदेश से आए लोग तीन-तीन दिनों तक लाइन लगाए रहते हैं और पचास हजार से ज्यादा श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन को आते हैं। श्रद्धालु यहां प्रभु को अपने केश चढ़ाते हैं, अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं। कल्याण कट्टा नामक स्थल पर भक्त अपने केश दान करने के बाद पुष्करिणी में स्नानकर प्रभु दर्शन को जाते हैं।
तिरुपति प्रांगण में ही श्री गोविंदराजस्वामी मंदिर है, जो बालाजी के बड़े भाई को समर्पित है। इस मंदिर का गोपुरम दूर से ही दिखाई पड़ता है, जो काफी भव्य है। इस मंदिर को संत रामानुजाचार्य ने 1130 में बनवाया था। यहां ब्रह्मोत्सव बैसाख में मनाया जाता है। तिरुपति से पांच किमी दूर है श्री पद्मावती समोवर मंदिर, जो भगवान वेंकटेश्वर की पत्नी श्री पद्मावती को समर्पित है। कहा जाता है कि तिरुमाला की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती, जब तक इस मंदिर का दर्शन न किया जाए। वेंकटेश्वर जहां विष्णु का अवतार हैं, वहीं पद्मावती को साक्षात लक्ष्मी माना गया है। यहां श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर, श्री कपिलेश्वरस्वामी मंदिर, श्री वेद नारायणस्वामी मंदिर, श्री कल्याण वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर, श्री वेणुगोपालस्वामी मंदिर, श्री प्रसन्ना वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर, श्री चेन्नाकेशस्वामी मंदिर, श्री करिया मणिक्यस्वामी मंदिर, श्री अन्नपूर्णा काशी विश्वेश्वरस्वामी मंदिर, श्री वराहस्वामी मंदिर, श्री बेदी अंजनेयस्वामी मंदिर तथा ध्यान मंदिरम आदि आध्यात्मिकता और धार्मिकता से परिपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं और सभी का अपना अलग इतिहास एवं उनसे संबद्ध पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इसके अलावा यहां आकाशगंगा वाटरफाल तथा टीटीडी गार्डन जैसे आकर्षक स्थल भी मौजूद हैं।
सर्वेश पाठक

3 comments:

  1. अभी कुछ हीं दिनों पहले तिरुपती बालाजी गया था । ईश्वर सबकी मनोकामना पूर्ण करे । स्वागत है आपका ।
    कृप्या वर्ड वेरीफिकेशन हटा दे, टिप्पणी करने में सुविधा होती है ।



    गुलमोहर का फूल

    ReplyDelete
  2. aap sabhi ka taheDIL se SHUKRIYA...
    jald hi kuch naya padhenge...
    aapka sarvesh...

    ReplyDelete