Thursday, November 21, 2013

बौद्धों का महान तीर्थ राजगीर

बुद्ध ने कहा कि जो मेरी बात समझेंगे, उन्हें मै हर काल में उपलब्ध रहूंगा और जो नहीं समझेंगे वे बुद्ध के सामने बैठे रहकर भी बुद्धत्व को उपलब्ध नहीं हो सकेंगे, क्योंकि बुद्ध हमारी जागरूक अवस्था है। हमारा शरीर समय व क्षेत्र से घिरा है, लेकिन भीतर के चैतन्य का इन दोनों से कोई नाता नहीं, क्योंकि वह दोनों का अतीत है  और आत्मबोध लक्ष्य न होकर प्रक्रिया है, जो हमें गहरे अनंत की ओर ले जाती है। गृहत्याग कर बुद्ध कुशीनगर, राजगृह (बिहार का राजगीर) होते हुए बोधगया पहुंचे और बुद्धत्व प्राप्ति के बाद सारनाथ, श्रावस्ती, कौशाम्बी आदि विविध स्थलों पर ज्ञानगंगा बहाई। भ्रमणकाल में उन्होंने कई बार राजगीर में प्रवास किया था। बुद्ध से जुड़ी इस कड़ी में तथागत और राजगीर के गूढ़ संबंधों को जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। 

जीवन के 29 सालों तक बुद्ध सांसारिक थे। उन्हें सारे सुख प्राप्त थे, पर उन्हेें अधिक चाहिए था। कुछ गहन, जो बाहरी दुनिया में उपलब्ध नहीं था। वे समझ गए कि इसके लिए भीतर छलांग लगानी होगी, फिर उन्होंने समस्त सुख त्याग भीतरी सत्य की तलाश शुरू की। कुछ वर्षों बाद उन्हें वह मिल गया, जिससे संसार विमुख था और फिर वह सिद्धार्थ से बुद्ध बन गए। ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध सात हफ्ते उरुवेला के आसपास रहे, फिर सारनाथ में उन्होंने बुद्धत्व की घोषणा की और कुछ महीने बाद उरुवेला लौट गए। वहां कुछ अनुयायियों ने उनसे दीक्षित करने की प्रार्थना की, जिन्हें दीक्षा देकर बुद्ध राजगीर चले गए। इसके बाद उनके उरुवेला लौटने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। फिर, वे विविध स्थलों पर जाकर बुद्धत्व का प्रकाश फैलाने लगे, जिनमें राजगीर प्रमुख है।

बौद्ध धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल

 कभी मगध साम्राज्य की राजधानी रहा राजगीर आज बौद्धों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। बुद्ध से जुड़ी तमाम घटनाओं के साक्षी राजगीर में ही बुद्ध के चचेेरे भाई देवदत्त ने उन्हें मारने की कोशिश की थी। राजगीर में ही बुद्ध को उपहारस्वरुप प्रथम मठ मिला और उनके महानिर्वाण के बाद प्रथम बौद्ध सम्मेलन भी यहीं हुआ था। यहां गृद्धकूट पहाड़ी, पिप्पहली गुफा, वेणुवन, जीवककरम मठ, तपोधर्म, सप्तपर्णी गुफा, जरासंध का अखाड़ा, स्वर्ण भंडार, शांतिस्तूप आदि स्थल अतीत का आइना हैं।
राजपाट त्याग सिद्धार्थ अपने सेवक छंदक के साथ कंठक नामक घोड़े पर सवार हो राज्य की सीमा पर पहुंचे, फिर उन्होंने राजकीय वेषभूषा व आभूषण छंदक को सौंप लौटने की आज्ञा दी और स्वयं भिक्षु बन राजगृह की ओर चले गए। वहां आलार कालाम तथा उद्दक रामपुत्र से योग-साधना सीखी। फिर, वे उरुवेला पहुंचे और साधना में खो गए। बुद्धत्व प्राप्ति के बाद बुद्ध कई बार राजगृह गए और अनुयायियों को जीवन का संदेश दिया। राजगीर में ग्रीधरकूट पहाड़ी पर बना का विश्व शांति स्तूप बेहद आकर्षक है, जहां तक पहुंचने के लिए रोपवे बना है।

यहां के पुरातन और प्रसिद्ध स्थल

ग्रीधरकूट: इस स्थल को गिरधरकूट या गृद्धकूट भी कहते हैं, इस पहाड़ी का संबंध बौद्ध धर्म से है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध जब राजगीर आते थे, तो इसी पहाड़ी पर ठहरते थे। इसी पहाड़ी पर भगवान बुद्ध पर जानलेवा हमला हुआ था। भगवान बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त ने यहीं पर उनको मारने का प्रयास किया था। यह पहाड़ी महायान संप्रदाय के कई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का मूक गवाह रहा है। इसी पहाड़ी पर प्रसिद्ध लोटस सूत्र भिक्षुओं का समर्पित किया गया था। इस पहाड़ी का जिक्र प्रसिद्ध विद्वान ह्वेनसांग ने भी किया था। आज भी यह पहाड़ी तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। वर्तमान में इस पहाड़ी पर जापान द्वारा निर्मित शांति स्तूप तथा रोपवे स्थित है।
शांतिस्तूप: यह विश्व शांति स्तूप 400 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। यह स्तूप संगमरमर है। इसका निर्माण जापान सरकार ने करवाया है। इस स्तूप में भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित है। इस स्तूप पर या तो आप पैदल जा सकते हैं या रोपवे के माघ्यम से। इस को गृद्धकूट के नाम से भी जाना जाता है।
वेणुवन: ग्रीधरकूट या गिरधरकूट पहाड़ी के निकट ही वेणु है, कहते हैं बुद्ध ने यहां प्रवास किया था। राजगृह के सम्राट बिंबिसार ने एक बार भगवान बुद्ध को बांसों का उपवन भेंट स्वरुप प्रदान किया था। यह उपवन वेणुवन था। इसी उपवन में पहला बौद्ध मठ बना। सम्राट ने बुद्ध को यह वन इसलिए प्रदान किया था कि जब वो राजगृह आएं तो इसी उपवन में आराम करें तथा जनता को उपदेश दें।
सप्तपर्णी गुफा:  राजगीर में ही प्रसिद्ध सप्तपर्णी गुफा है, जहां बुद्ध के निर्वाण के बाद पहला बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया गया था। भगवान बुद्ध भी कई बार इस गुफा में ठहरे थे। उस समय यह गुफा बौद्ध भिक्षुओं के रहने के काम आता था। यह गुफा राजगीर बस पड़ाव से दक्षिण में गर्म जल के कुंड से 1000 सीढिय़ों की चढ़ाई पर है। यहां तक जाने का एक मात्र साधन घोड़ागाड़ी है जिसे यहां टमटम कहा जाता है।
करंद तालाब: माना जाता है कि भगवान बुद्ध जब राजगीर आते थे तो इसी तालाब में स्नान किया करते थे।
तपोधर्म: तपोधर्म मठ गर्म झरने के नजदीक स्थित है। वर्तमान में यहां एक हिन्दू मंदिर का निर्माण किया गया है। यह मंदिर लक्ष्मी-नारायण मंदिर है। भगवान बुद्ध के समय में यहां एक मठ था। सम्राट बिंबिसार भी इस मठ के पास स्थित गर्म झरने में स्नान करने के लिए आते थे।
गर्म पानी का झरना: वैभव पहाड़ी के किनारे गर्म पानी का झरना है। इस झरने में स्त्री और पुरुष के स्नान के लिए अलग-अलग स्थान बने हुए हैं। यहां सप्तधारा झरना भी है। यह झरना सिंह के आकार का है। सात सिंहो के मुंह से गर्म पानी आता है। माना जाता है कि यह गर्म पानी सप्तपर्णी गुफा से आता है। इसके अलावा एक ब्रह्मकुंड भी है। इस कुंड में स्त्री और पुरुष एक साथ स्नान करते हैं। इस कुंड के पानी का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस रहता है। इसी कुड के पास लक्ष्मी-नारायण मंदिर बना हुआ है।
जीवककरम: राजगीर में बुद्ध के समय में जीवक नाम के एक महान वैद्य थे। उन्होंने भगवान बुद्ध को एक मठ उपहारस्वरुप प्रदान किया था। यह मठ जीवककरम मठ था।
पिप्पहली हाउस या गुफा:  इस गुफा का उल्लेख पाली साहित्य में मिलता है। इसी गुफा में बौद्ध गुरु महाकश्यप कई बार ठहरे थे। इस गुफा के नजदीक इसी नाम से एक घर भी बना हुआ है।
बिंबिसार का जेल: राजगीर के जंगलों में एक भवन का अवशेष मिलता है। यह भवन गोलाकार था। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यह जेल था। इसी जेल में अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार को बंद किया था। इस भवन का उस समय में सामरिक दृष्टि से काफी महत्व था। इस अवशेष की खोज 1914 ई. में हुई थी। प्रथम शताब्दी में इस भवन को एक मठ के रुप में उपयोग किया जाता था।
अजातशत्रु का किला: इस किले का निर्माण सम्राट अजातशत्रु ने 6ठीं शताब्दी ई. पूर्व में करवाया था। कहा जाता है कि इसके पास स्थित 6.5 मीटर ऊंचा स्तूप भी अजातशत्रु द्वारा ही बनवाया गया था।
जरासंध का अखाड़ा: महान योद्धा जरासंध इसी अखाड़े में अभ्यास किया करता था। जरासंध ने ही कृष्ण को मारने के लिए मथुरा पर 24 बार आक्रमण किया था।
लक्ष्मी-नारायण मंदिर: गुलाबी रंग का यह मंदिर गर्म पानी के झरने के पास ब्रह्मकुंड के ऊपर बना हुआ है। जैसा कि मंदिर के नाम से ही स्पष्ट है यह मंदिर भगवान विष्णु और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी को समर्पित है। भगवान बुद्ध के समय में इसी झरने के नजदीक तपोधर्म मठ बना हुआ था। सम्राट बिंबिसार इस झरने में स्नान करने आया करते थे।
प्राचीन राजपथ: प्राचीन काल में यह राजगृह में प्रवेश का मुख्य रास्ता था। माना जाता है कि इसी रास्ते से भगवान कृष्ण ने राजगृह में प्रवेश किया था। अभी इस रास्ते में पत्थर के दो खंभे हैं। यह रास्ता 30 फीट चौड़ा है। रास्ते की चौड़ाई देख कर लगता है कि इस रास्ते से एक साथ कई रथ गुजर सकते थे। कहा जाता है महाभारत काल में जब कृष्ण ने राजगृह में प्रवेश किया था तो उनके रथ की गति से रास्ते के पत्थर जल गए थे। इस रास्ते को देख कर पर्यटक उस समय की घटना का अहसास कर सकते हैं।
साइक्लोपियन दीवार: 40 किलोमीटर लंबा यह दीवार कभी पूरे राजगीर की रक्षा करता था। यह दीवार पत्थरों का बना था। पूर्व मौर्य काल के संरचना का यह एक मात्र प्राप्त अवशेष है। इस दीवार के अवशेष राजगीर से गया जाने वाले रास्ते में देखे जा सकता हैं।
सोन भंडार गुफा: इस गुफा में दो कक्ष बने हुए हैं। ये दोनो कक्ष पत्थर की एक चट्टान से बंद है। कक्ष सं. 1 माना जाता है कि सुरक्षाकर्मियों का कमरा था। जबकि दूसरे कक्ष के बारे में मान्यता है कि इसमें सम्राट बिंबिसार का खजाना था। कहा जाता है कि अभी भी बिंबिसार का खजाना इसी कक्ष में बंद है।
विरायतन: इसमें एक जैन मंदिर तथा संग्रहालय है।
जैन मंदिर: राजगीर के आस-पास की पहाडियों पर 26 जैन मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों तक पहुंचना काफी कठिन है। लेकिन पर्वतारोहियों के लिए यहां पहुंचना एक रोमांचक यात्रा हो सकता है।
स्वर्ण भंडार: कहा जाता है कि यहां सम्राट जरासंध के सोने का खजाना है। स्थानीय लोगों के अनुसार इस गुफा में अभी जरासंध का सोना बंद है। माना जाता है कि इस गुफा को खोलने का एक ही उपाय है। उपाय यह है कि इस गुफा पर लिखे लिपि को पढ़ा जाय। कहा जाता है कि यह लिपि स्वर्ण भंडार गुफा को खोलने का कोड है।

आस-पास के दर्शनीय स्थल

सूरजपुर बडग़ांव:  राजगीर से 18 किलोमीटर दूर इस जगह पर एक झील तथा प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है। यहां तीर्थयात्री वर्ष में दो बार एकत्रित होते हैं। वैशाख (अप्रैल-मई) तथा कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) में दूर-दूर से लोग प्रसिद्ध छठ पर्व मनाने आते हैं।
कुंडलपुर:  राजगीर से 18 किलोमीटर दूर कुंडलपुर के बारे में जैन धर्म के दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुयायियों का मानना है कि भगवान महावीर का जन्म यहीं हुआ। यहां एक जैन मंदिर तथा दो लोटस झीलें दिरगा पुष्कर्णी तथा पांडव पुष्कर्णी हैं।
पावापुरी:  राजगीर से 20 किलोमीटर दूर स्थित पावापुरी को अपापुरी भी कहते हैं। माना जाता है कि जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर ने अपना अंतिम उपदेश यहीं दिया था। उन्होनें यहीं पर महापरिर्निर्वाण ग्रहण किया तथा उनका अंतिम संस्कार भी यहीं किया गया। यहां जलमंदिर तथा समोशरण नामक दो प्रसिद्ध जैन मंदिर है।